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कछार

4.5
27268

पूरा गांव इंतज़ार कर रहा था उसमें भी ख़ासतौर पर स्त्रियां।उन्हें रूपा के ससुराल से वापस भेज दिए जाने का इंतज़ार था। यह दृढ विश्वास स्त्रियों के मन में रूपा के विवाह के भी सालों पहले से उसके प्रति बना ...

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समीक्षा
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  • author
    Kanchan Purohit
    21 फ़रवरी 2020
    प्रज्ञा जी आपकी कहानी कछार पढ़ी ।अपने किस साफगोई से नायिका खाका खिंचा है ।वाकई काबिले तारीफ है ।बिना बात का तमाशा बनाये नायिका अपने को प्रस्तुत करती है ।साथ ही उसका समाज में अपने तौर से जीने का अंदाज और उसके ही मुताबिक अपनी देवरानी के रूप में एक और सशक्त महिला को पसंद करना उसकी कथनी और करनी एक ही है को दर्शाता है ।आप साधुवाद की हकदार है।
  • author
    Namrata Syal
    23 जनवरी 2020
    पुरी की पुरी मेरी जिंदगी की कहानी है, यही सब हुआ। मेरे तो घरवालों ने भी चरित्रहीन का टेग दिया था मुझे। गांव के लोग बहुत साल तक इंतजार करते रहे मेरे तलाक का। अपनी ससुराल में मेंने बेहद तकलीफ़ सही है पर दोबारा कभी गांव नहीं गई। यह समाज ही है जो औरत को बर्दाश्त करने को मजबुर करता है।
  • author
    Annapurna Mishra
    14 जुलाई 2017
    बहुत कुछ सुनना पड़ता है समाज की धारा के विपरीत चलने पर,परन्तु मील के पत्थर भी वही साबित हुए
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    Kanchan Purohit
    21 फ़रवरी 2020
    प्रज्ञा जी आपकी कहानी कछार पढ़ी ।अपने किस साफगोई से नायिका खाका खिंचा है ।वाकई काबिले तारीफ है ।बिना बात का तमाशा बनाये नायिका अपने को प्रस्तुत करती है ।साथ ही उसका समाज में अपने तौर से जीने का अंदाज और उसके ही मुताबिक अपनी देवरानी के रूप में एक और सशक्त महिला को पसंद करना उसकी कथनी और करनी एक ही है को दर्शाता है ।आप साधुवाद की हकदार है।
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    Namrata Syal
    23 जनवरी 2020
    पुरी की पुरी मेरी जिंदगी की कहानी है, यही सब हुआ। मेरे तो घरवालों ने भी चरित्रहीन का टेग दिया था मुझे। गांव के लोग बहुत साल तक इंतजार करते रहे मेरे तलाक का। अपनी ससुराल में मेंने बेहद तकलीफ़ सही है पर दोबारा कभी गांव नहीं गई। यह समाज ही है जो औरत को बर्दाश्त करने को मजबुर करता है।
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    Annapurna Mishra
    14 जुलाई 2017
    बहुत कुछ सुनना पड़ता है समाज की धारा के विपरीत चलने पर,परन्तु मील के पत्थर भी वही साबित हुए