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ज़िन्दगी की प्रताड़ना

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ये तो बता ऐ जिन्दगी तू मुझे क्यों इतना रुला रही है हंसी तो न दी मेरे होंठों पर रोज गमों की बारात ला रही है जो आंसुओं की बारिश दी है तूने मेरी आंखों में गुनाह तो बता मेरा जो इतने कहर ढा रही है ...

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लेखक के बारे में
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प्रमोद कुमार

मैं अभिव्यक्ति हूं, भावनाओं की शब्दों में मन के चित्र को ,कागज पर उकेरती है लेखनी

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