ढलती शाम सफेद आसमां और बिंदी सा चांद, पूर्णिमा की रौशनी और नदी के उस पार, अनंत आकाश कहीं दूर चांद, ठंडी हवाएं कानों को छू कर पीछे से कहती, तन्हा सी है जिंदगी जिंदा है तू पर जिंदा नहीं, ठंड शरद ...
ढलती शाम सफेद आसमां और बिंदी सा चांद, पूर्णिमा की रौशनी और नदी के उस पार, अनंत आकाश कहीं दूर चांद, ठंडी हवाएं कानों को छू कर पीछे से कहती, तन्हा सी है जिंदगी जिंदा है तू पर जिंदा नहीं, ठंड शरद ...