झरना और पर्वत आपस में टकराये रस्ते पर। पर्वत अकड़ के बोला झरने, चलना राह बचाकर॥ मुझसे जो टकराये बेटा, चूर-चूर हो जाये। तेरी क्या औकात है जो तू मेरे रस्ते पर आये॥ अकड़ भरी थी पर्वत में, झरना है प्यार का सागर। चलने लगा राह के सारे, पौधों को सरसाकर॥ पर्वत को अपमान लगा,झरने की इतनी हिम्मत। उत्तर दिये बिना जाता है, इसकी क्या है कीमत! हाथ पकड़ के रोका उसको, अपना रौब दिखाया। चमत्कार करके उसने फ़िर अपना कद फ़ैलाया॥ लम्बा-चौड़ा पसर गया,आकाश में ऊँचा उठता। दुनियां काँप गई, पर्वत क्यों इतना गुस्सा करता झरना ...
रिपोर्ट की समस्या