pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

जीवन की अभिलाषा

70
5

जीवन में कितनी हैं अभिलाषाएं, मन में दफ़न हैं कितनी आशाएं, जीवन में नहीं मिलता ये सब कुछ, जीवन जीना दूभर हो गया सचमुच, जब भी देखती हूँ पीछे मुड़कर कभी, दर्द का सैलाब लिए खड़ी ज़िन्दगी अभी, जीवन कोई कविता ...