भारती चाँद की सोलह कलाएँ,बत्तीस तो मुझ में भी हैं घटता, बढता, छिपता ऐसा ही मेरा जीवन भी है दाग हैं जैसे उसके मुख पर कुछ मेरे अतंर मन पर भी हैं पडी छाया ना मालूम किसकी कुछ राहु मेरे सँग भी ...
भारती चाँद की सोलह कलाएँ,बत्तीस तो मुझ में भी हैं घटता, बढता, छिपता ऐसा ही मेरा जीवन भी है दाग हैं जैसे उसके मुख पर कुछ मेरे अतंर मन पर भी हैं पडी छाया ना मालूम किसकी कुछ राहु मेरे सँग भी ...