राम राम कौन! कब! कैसे और कहां हमारे लिए इतना खास हो जाता है कि हम समझ ही नहीं पाते हैं। कोई अंजाना सा, जाना पहचाना अपना सा लगने लगता है। प्रतिलिपि जीवन का एक हिस्सा बन गई है और यहां पर मुझे बहुत ...
राम राम कौन! कब! कैसे और कहां हमारे लिए इतना खास हो जाता है कि हम समझ ही नहीं पाते हैं। कोई अंजाना सा, जाना पहचाना अपना सा लगने लगता है। प्रतिलिपि जीवन का एक हिस्सा बन गई है और यहां पर मुझे बहुत ...