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जलडमरूमध्य

4.4
7113

मम्मी-पापा को लेकर चिन्मय गाँव से आ रहा था। उन्हें लेने के लिए मनजीत स्टेशन पहुँच चुकी थी। लेकिन ट्रेन आ ही नहीं रही थी। मनजीत ने घड़ी देखी, थोड़ा वक्त और काटना है। उसने सिगरेट सुलगाई। प्लेटफार्म पर ...

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लेखक के बारे में
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अखिलेश

जन्म : 6 जुलाई 1960, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) भाषा : हिंदी विधाएँ : कहानी, उपन्यास, संस्मरण, संपादन मुख्य कृतियाँ कहानी संग्रह :  अँधेरा, आदमी नहीं टूटता, मुक्ति, शापग्रस्त उपन्यास : अन्वेषण, निर्वासन संस्मरण : वह जो यथार्थ था संपादन : तद्भव (अनियतकालीन पत्रिका), श्रीलाल शुक्ल की दुनिया (श्रीलाल शुक्ल के रचनाकर्म पर एकाग्र), एक किताब एक कहानी (किताबों की एक श्रृंखला), दस बेमिसाल प्रेम कहानियाँ, कहानियाँ रिश्तों की (रिश्ते-नातों पर आधारित ग्यारह किताबों की एक श्रृंखला) सम्मान श्रीकांत वर्मा पुरस्कार, वनमाली कथा पुरस्कार, इंदु शर्मा कथा सम्मान, परिमल सम्मान, अयोध्या प्रसाद खत्री पुरस्कार, स्पंदन सृजनात्मक पत्रकारिता पुरस्कार, राजकमल प्रकाशन कृति सम्मान : ‘कसप’ - मनोहर श्याम जोशी पुरस्कार , कथाक्रम  पुरस्कार

समीक्षा
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    Yashpal
    19 സെപ്റ്റംബര്‍ 2017
    अखिलेश जी सर्वप्रथम तो आपको हार्दिक अभिनन्दन.. इस रचना के लिए।। आप वास्तव में एक मेहनती और कामयाब व्यक्तित्व के धनी हैं।। आप की रचना पढ़ते वक्त प्रत्येक पृष्ठ पूरा होने पर उत्सुकता बढती गयी और समाप्ति पर पहुंचने तक समय का अंदाजा भी नहीं लगा पाये कि कितना समय लग गया पढ़ने में.. लेकिन वो समय बेहतरीन अनुभव व एहसास देकर गया।। और हम गर्व से कह सकते हैं कि वो समय व्यर्थ नहीं बीता।। आपकी कलम के प्रति दीवानगी वाकई सराहनीय है।। आपका दिल से धन्यवाद।। प्रभु सदैव अपनी कृपा आप पर बनाये रखें।। Keep it up.......
  • author
    Varun Kaushik
    24 ജനുവരി 2020
    अर्थपूर्ण प्रयास। ग्रामीण और शहरी परिवेश के शांत टकराव का सुंदर चित्रण। अंत में सम्पत्ति बेचे जाने के बाद सहाय जी की दिनचर्या का यदि थोड़ा वर्णन होता तो ज्यादा अच्छा रहता।
  • author
    10 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    कितना मतलबी होता जा रहा इन्सान , पुरखों की मेहनत से बनाई गई संपत्ति पर ऐश करना है बस।
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    Yashpal
    19 സെപ്റ്റംബര്‍ 2017
    अखिलेश जी सर्वप्रथम तो आपको हार्दिक अभिनन्दन.. इस रचना के लिए।। आप वास्तव में एक मेहनती और कामयाब व्यक्तित्व के धनी हैं।। आप की रचना पढ़ते वक्त प्रत्येक पृष्ठ पूरा होने पर उत्सुकता बढती गयी और समाप्ति पर पहुंचने तक समय का अंदाजा भी नहीं लगा पाये कि कितना समय लग गया पढ़ने में.. लेकिन वो समय बेहतरीन अनुभव व एहसास देकर गया।। और हम गर्व से कह सकते हैं कि वो समय व्यर्थ नहीं बीता।। आपकी कलम के प्रति दीवानगी वाकई सराहनीय है।। आपका दिल से धन्यवाद।। प्रभु सदैव अपनी कृपा आप पर बनाये रखें।। Keep it up.......
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    Varun Kaushik
    24 ജനുവരി 2020
    अर्थपूर्ण प्रयास। ग्रामीण और शहरी परिवेश के शांत टकराव का सुंदर चित्रण। अंत में सम्पत्ति बेचे जाने के बाद सहाय जी की दिनचर्या का यदि थोड़ा वर्णन होता तो ज्यादा अच्छा रहता।
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    10 സെപ്റ്റംബര്‍ 2019
    कितना मतलबी होता जा रहा इन्सान , पुरखों की मेहनत से बनाई गई संपत्ति पर ऐश करना है बस।