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जान बुझ कर

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जान बुझ कर हर रात मे पैमाने मे सराब रखता हूँ मै तो घर के दरवाज़ा को हर बार खुला रखता हू ...शायद कोई कभी हमारे भी ग़म चुरा ले ll इसलिए अंखियों को नशे मे बंद रखता हू ll ...

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लेखक के बारे में
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Ekta Pathak

🌹🌹🌹🌹फूल बनकर नहीं पत्थर बन जीते है ll🌹🌹🌹🌹 मुर्झा जाने पर फूल तो मसल कर फेंक दिए जाते है ll पत्थर को तराशे जाने पर एक मूरत देखा करते है ll🙏🙏 दुनिया में प्यार तो खुद से बस करते है ll दूसरो को तो वारों से छलनी किया करते है ll अब हमे बेखोफ उड़ना है सभी तूफ़ानों से लड़ना सीखना है अपने लिए जिना है और अपनी पहचान को खुद से ही पहचान कर एक नया मुकाम बना उस पर मुकम्मल जहाँ को पाना है 😍😍😍 कुछ खास नहीं बस मन के अपने सपनो को शब्दों में सजाते हैंll कुछ भी देखते हैं उसको दिखाना चाहते हैं ll

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    14 अगस्त 2021
    बहुत बढ़िया
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    14 अगस्त 2021
    बहुत बढ़िया