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इंसानियत

4.7
1563

तोते ने मैना से कहा -" जानती हो! इंसान जानवर हो गया है,और जानवरों में इंसानियत आ गई है। " " अच्छा! कैसे? " मैना ने कौतूहल से पूछा। " आज मैंने देखा,सड़क पर सरे-आम हाथ में रिवाल्वर लिए,चार-पाँच गुंडे एक लड़की को पकड़े हुए थे,उसके कपड़े नोंच रहे थे। राहगीर डर के मारे भाग रहे थे। तभी....अचानक मुहल्ले के सारे कुत्तों ने उन गुंडों पर हमला बोल दिया था....! " तोते ने मैना को बताया। ...

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लेखक के बारे में

विजयानंद विजय पता - आनंद निकेत बाजार समिति रोड पो. - गजाधरगंज बक्सर ( बिहार ) - 802103 जन्म तिथि - 1 जनवरी 1966 शिक्षा - एम.एस-सी; एम.एड्; एम.ए. (हिंदी) संप्रति - अध्यापन (राजकीय सेवा)। निवास - बोधगया, बिहार उपलब्धियाँ - विभिन्न राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय पत्र - पत्रिकाओं में कहानी, कविता, व्यंग्य व लघुकथाएँ नियमित रूप से प्रकाशित।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    अरविन्द सिन्हा
    01 ஜனவரி 2020
    अत्यन्त ही सारगर्भित ।
  • author
    Shekhar Bhardwaj
    12 மார்ச் 2018
    haa ...sach to hai..
  • author
    aniketmadhusudan patel "Patel"
    24 ஆகஸ்ட் 2021
    बहुत बहुत बढ़िया है
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    अरविन्द सिन्हा
    01 ஜனவரி 2020
    अत्यन्त ही सारगर्भित ।
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    Shekhar Bhardwaj
    12 மார்ச் 2018
    haa ...sach to hai..
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    aniketmadhusudan patel "Patel"
    24 ஆகஸ்ட் 2021
    बहुत बहुत बढ़िया है