वास्तविक को अवास्तविक बताकर, प्रकृति को मारकर, संस्कारों को दफनाकर हम तरक्की नहीं कर सकतें। हम अपनी मौत को निमन्त्रण ही दे रहे हैं।
वास्तविक को अवास्तविक बताकर, प्रकृति को मारकर, संस्कारों को दफनाकर हम तरक्की नहीं कर सकतें। हम अपनी मौत को निमन्त्रण ही दे रहे हैं।