मैं औरत एक देह हूँ ! तभी तो कभी बिन अंगिका के पुरूषों के बिस्तर तक सिमटी ! कभी दिवार की पोस्टर पे खुले खुले बदन चिपकी सी ! कभी वस्तुओं के डिब्बे पे साबुन की झाग जैसी बुलबुले लेते हूँ ! कभी मंडी में ...
मैं औरत एक देह हूँ ! तभी तो कभी बिन अंगिका के पुरूषों के बिस्तर तक सिमटी ! कभी दिवार की पोस्टर पे खुले खुले बदन चिपकी सी ! कभी वस्तुओं के डिब्बे पे साबुन की झाग जैसी बुलबुले लेते हूँ ! कभी मंडी में ...