रात को छत पर बिस्तर लगा, तारे गिनना, और आती जाती जहाज देख खुश होना, पूरे दिन के किस्से माँ को सुनाना, दादी से कहानियां सुनना..... बहुत याद आते है ये सब.... ...
“एक ये ख्वाहिश कोई ज़ख्म ना देखे
एक ये हसरत कोई देखने वाला होता”
मैं समंदर की वो लहर हूँ
जो शांत तो है लेकिन कमज़ोर नहीं...
खुद को भी वक्त दीजिये...
....क्योंकि.....
आपकी पहली जरुरत.
आप खुद हैं....
सारांश
“एक ये ख्वाहिश कोई ज़ख्म ना देखे
एक ये हसरत कोई देखने वाला होता”
मैं समंदर की वो लहर हूँ
जो शांत तो है लेकिन कमज़ोर नहीं...
खुद को भी वक्त दीजिये...
....क्योंकि.....
आपकी पहली जरुरत.
आप खुद हैं....
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बधाई हो! **हाँ ठीक हूँ इतने में कहाँ मानती हैं *💗*माँ*💗*
धड़कने उसी की हैं इसलिए सब जानती हैं....!!
*💗*माँ*💗* प्रकाशित हो चुकी है।. अपने दोस्तों को इस खुशी में शामिल करे और उनकी राय जाने।