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गुनाह

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मानता हूं कि मैं गुनाहगार हूँ,  जिश्म के दौर में इश्क़ रूह से किया नादाँ था जो मतलबी इश्क़ में, जलाने लगा आरती का दिया सिर झुकाकर मुझे सब मंजूर है, दिल में आये जो मुझको सजा दीजिये जिऊंगा भला कैसे ...

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एडवोकेट

इस मतलब की दुनिया में कौन किसी का यार हुआ? बिस्तर बांटा, वस्त्र त्यागे, और कहा की प्यार हुआ

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