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ग़ज़ल ~ अनु श्री दुबे 'अक्षरा'

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212      212        212      212 गलतियों पर सदा सिर झुकाए रहे। फिर सभी के भला क्यों पराये रहे। पास खंजर सभी के सदा ही रहे; फिर सभी को गले क्यों लगाये रहें। बेवजह क्यों सदा हम मनाते रहे; मुंह फिर भी ...

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