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ग़ज़ल 1222 1222 122

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1222 1222 122 सहर होते चले जानिब पता क्या परिन्दों के मुक़द्दर में लिखा क्या/१ सदा   बेख़ौफ़  सी  हैं जो  हवाएं मिला इस जिंदगी को रास्ता क्या/२ लगा रहता है डर तुमको सदा क्या भला हो ज़िंदगी में फिर मजा ...