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गर्व से या शर्म से !

3.3
527

गर्व से कि शर्म से ! कुछ तो ऐसा करें कि गर्व करें कुछ न ऐसा करें कि शर्म करें लोग अब भी हैं बहुत अजाने से सच्चाई जानने का मर्म करें रास्ते बंद नहीं और भी हैं दो कदम और चलने ...

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लेखक के बारे में
समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 अक्टूबर 2015
    ज़माने जैसे शब्द राष्ट्र भाषा ज्ञान दर्शा रहे हैं ।अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
  • author
    13 जनवरी 2019
    बहुत क्रांतिकारी और सार्थक लेखन है आपका सर । कृपया अपना परिचय भी प्रदान करें ।
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    Satyendra Kumar Upadhyay
    19 अक्टूबर 2015
    ज़माने जैसे शब्द राष्ट्र भाषा ज्ञान दर्शा रहे हैं ।अत्यंत सारहीन व अप्रासांगिक कविता है ।
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    13 जनवरी 2019
    बहुत क्रांतिकारी और सार्थक लेखन है आपका सर । कृपया अपना परिचय भी प्रदान करें ।