pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

गरीब माँ का दिल

5
32
जीवनलघुकथा

उस सहृदय माँ के निस्तेज आँखों में चमक आ गयी , बोली -" तो क्या हुआ ! कटहल हीं तो था " उतने बड़े आदमी , उनको खाने का जी चाहा  , आपसे मांग लिए ,दाल भात तो है , तरुण ख़ुशी ख़ुशी खा लेगा |

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
Jibendra Choudhary

मैं कभी कभी एक स्वतंत्र लेखक के तौर पर अपने संस्मरण लिखा करता हूं। जल्द हीं आपको दूसरी प्यारी रचना से रूबरू कराऊंगा । धन्यवाद।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है