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गैंग्रीन, ऊर्फ रोज़।।। सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय

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गैंग्रीन/रोज कहानी दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे ऐसा जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाप की छाया मँडरा रही हो, उसके वातावरण में कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी बोझिल और प्रकम्पमय और ...