गलतियों का पुलिंदा है इंसान, पर मानता कहाँ है? अनजान बनता है बड़ा, जानते हुए भी जानता कहाँ है? गलतियों का पुलिंदा है इंसान, पर मानता कहाँ है? एक गलती, फिर एक गलती, गलती पर गलती, छुपा छुपा कर करता ...
गलतियों का पुलिंदा है इंसान, पर मानता कहाँ है? अनजान बनता है बड़ा, जानते हुए भी जानता कहाँ है? गलतियों का पुलिंदा है इंसान, पर मानता कहाँ है? एक गलती, फिर एक गलती, गलती पर गलती, छुपा छुपा कर करता ...