कमबख्त , टिक-टिक करती घड़ी की सूईयों ने कब, मुझे उनकी नजरों में चंद्रमुखी से ज्वालामुखी बना दिया, पता ही नहीं चला !खाना-पीना, उठाना-बैठना , हर जगह साथ जाना , एक-दूसरे पर मर-मिटना …ये सबकुछ सपना-सा ...
कमबख्त , टिक-टिक करती घड़ी की सूईयों ने कब, मुझे उनकी नजरों में चंद्रमुखी से ज्वालामुखी बना दिया, पता ही नहीं चला !खाना-पीना, उठाना-बैठना , हर जगह साथ जाना , एक-दूसरे पर मर-मिटना …ये सबकुछ सपना-सा ...