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फिसलन

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मुट्ठी से सरकते यादों के रेत, याद दिला जाते है अक्सर, वो महुए के पेड़ और केले के खेत, जहाँ हम रोज मिला करते थे, तुम्हारी वो बातें और कोयल कि कू कू का, कमोबेश एक सा ही प्रभाव , कानों में मिसरी घोल ...

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लेखक के बारे में

मैं क्या कहूं अपने विषय में,जब खुश होती हूं लिखती हूं।जब दुःखी होती हूं‌।जब हंसती हूं तब लिखती हूं,जब रोती हूं जब भी लिखती हूं।

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