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फेसबुक के नाम एक कविता

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3.8

काश हर चेहरा किताब होता, कितनी आसानी से पढ़ लेता हर दिल की इबारत,और पहचान लेता हर सूरत की हक़ीक़त,Q काश हर चेहरा किताब होता तो लफ़्ज़ों की धूप छाँव में ढूँढ आता ज़िन्दगी, भांप लेता खिलखिलाते लोगों का ...