घर ऐसे टूट रहे हैं, जैसे माला के तार, बिखर गए परिवार के मोती, बन गए एकांकी परिवार, बच्चे बंट रहे हैं, मां बाप बंट रहे हैं, मॉर्डनेटी के नाम पर सब, अपने रिश्तों को घिसड़ रहे हैं। ना प्यार बचा है, ...
मैं एक आजाद पंछी थी,मां बाप के आंगन में उड़ती थी और खुश रहती थीं। लेकिन अब पिंजरे में हूं...... उड़ना चाहती हूं पहले के जैसे लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी हुई हूं।
सारांश
मैं एक आजाद पंछी थी,मां बाप के आंगन में उड़ती थी और खुश रहती थीं। लेकिन अब पिंजरे में हूं...... उड़ना चाहती हूं पहले के जैसे लेकिन जिम्मेदारियों के बोझ तले दबी हुई हूं।
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