कहानी देश की अर्थव्यवस्था में आम आदमी के शोषण को तो रेखांकित करती ही है लोगों की संवेदना पर पड़े पत्थर से भी रूबरू कराती है। फिर सियासत यदि मौत पर भी न हो तो कहें का लोकतंत्र।
कहानी देश की अर्थव्यवस्था में आम आदमी के शोषण को तो रेखांकित करती ही है लोगों की संवेदना पर पड़े पत्थर से भी रूबरू कराती है। फिर सियासत यदि मौत पर भी न हो तो कहें का लोकतंत्र।