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एक पत्ते की आत्म-कथा

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मेरी माँ का नाम लता दुबली अबला,दीवार का सहारा कौन था पिता मेरा? होगा कोई परागकण बंजारा होश सँभाला मैंने तो किसलय था प्यार से मुझे कहते हरिया कारण शायद मेरे कपोल दुधिया हरे माँ के स्नेहिल तंतुओं ने ...

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लेखक के बारे में

राजनयिक, शोधकर्ता,कवि । भारतीय विदेश सेवा से निवृत होने के पहले विदेश मंत्रालय में सचिव तथा दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, यूरोपीय समुदाय एवम यमन में राजदूत रहे।

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