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दूरियाँ मन की

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3.9

सुनो न, सुन भी लो कहती रही मैं और वो दूर निकल गया अपने ही ख्यालों में गुम मुझसे दूर चला गया मैं तन्हां, सोचती रही न जाने कब हाथ छूटा जाने क्यों साथ छूट गया... कब इतनी दूरियां आ गई क़ि उस तक मेरी ...