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दूर गगन का एक तारा

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दूर गगन का एक तारा , सब तारों से है न्यारा , घंटों बैठ छत पर , जिसको मैंने खुब निहारा , दूर गगन का एक तारा , सब तारों से है न्यारा , मेरा जीत भी , मेरा हार भी , मेरा नफरत , मेरा प्यार भी , हर राज का ...

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लेखक के बारे में
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Sanjay Kumar Nirala

बांटकर खुशियां उधार, हम आज भी कंगाल ही रहे, वक्त की बात क्या करें, बेवक्त भी लौटाने से वे ऐसे कतरे, जैसे हम कर्जदार ठहरे,,!!

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