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हिन्दी

दूध का दाम

4.6
27388

अब बड़े-बड़े शहरों में दाइयाँ, नर्सें और लेडी डाक्टर, सभी पैदा हो गयी हैं; लेकिन देहातों में जच्चेखानों पर अभी तक भंगिनों का ही प्रभुत्व है और निकट भविष्य में इसमें कोई तब्दीली होने की आशा नहीं। बाबू ...

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लेखक के बारे में

मूल नाम : धनपत राय श्रीवास्तव उपनाम : मुंशी प्रेमचंद, नवाब राय, उपन्यास सम्राट जन्म : 31 जुलाई 1880, लमही, वाराणसी (उत्तर प्रदेश) देहावसान : 8 अक्टूबर 1936 भाषा : हिंदी, उर्दू विधाएँ : कहानी, उपन्यास, नाटक, वैचारिक लेख, बाल साहित्य   मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के महानतम साहित्यकारों में से एक हैं, आधुनिक हिन्दी कहानी के पितामह माने जाने वाले प्रेमचंद ने स्वयं तो अनेकानेक कालजयी कहानियों एवं उपन्यासों की रचना की ही, साथ ही उन्होने हिन्दी साहित्यकारों की एक पूरी पीढ़ी को भी प्रभावित किया और आदर्शोन्मुख यथार्थवादी कहानियों की परंपरा कायम की|  अपने जीवनकाल में प्रेमचंद ने 250 से अधिक कहानियों, 15 से अधिक उपन्यासों एवं अनेक लेख, नाटक एवं अनुवादों की रचना की, उनकी अनेक रचनाओं का भारत की एवं अन्य राष्ट्रों की विभिन्न भाषाओं में अन्यवाद भी हुआ है। इनकी रचनाओं को आधार में रखते हुए अनेक फिल्मों धारावाहिकों को निर्माण भी हो चुका है।

समीक्षा
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  • author
    Neelima Ghosh
    05 अप्रैल 2019
    इतने महान लेखक की रचना की समीक्षा करना भी असंभव है
  • author
    harit virsingh
    26 जनवरी 2020
    मुंशी प्रेमचंद जी एक सफल कहानीकार, उपन्यासकार रहे हैं उन पर समीक्षा करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। उनकी कहानी में जातिवाद और छुआछूत का असर देखने को मिलता है। जब एक साल तक भूंगी ने बच्चें को दूध पिलाया उस समय अछूत कोई नहीं होता है लेकिन मंगल को छूने भर से अपवित्र हो जाते हैं ये उस धर्म का नियम अलग -अलग लोगों के लिए अलग- अलग नियम भेदभावपूर्ण क्या आज के समय में तर्क संगत है। प्रेमचन्द जी ने शोषित वर्ग का नाम अपनी कहानी में बार- बार उसकी जाति से पुकारा है जोकि एक बार उसकी जाति से पुकार कर वस्तु स्थिति से अवगत कराया जा सकता था। उनकी कहानी ग्रामीण क्षेत्र एवं शोषित वर्ग की पीड़ा को उजागर करती है।
  • author
    Somnath Narang
    10 मई 2020
    महान रचना....आज अगर मुन्शी जी जीवित होते ऐसी रचना लिखने पर लिब्रान्डू, वामपंथी कबाल, भीम आर्मी व सेक्युलर ब्रिगेड ने उनका जीना मुश्किल कर दिया होता...और उनकी जान के पीछे पड़ गए होते।
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    Neelima Ghosh
    05 अप्रैल 2019
    इतने महान लेखक की रचना की समीक्षा करना भी असंभव है
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    harit virsingh
    26 जनवरी 2020
    मुंशी प्रेमचंद जी एक सफल कहानीकार, उपन्यासकार रहे हैं उन पर समीक्षा करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। उनकी कहानी में जातिवाद और छुआछूत का असर देखने को मिलता है। जब एक साल तक भूंगी ने बच्चें को दूध पिलाया उस समय अछूत कोई नहीं होता है लेकिन मंगल को छूने भर से अपवित्र हो जाते हैं ये उस धर्म का नियम अलग -अलग लोगों के लिए अलग- अलग नियम भेदभावपूर्ण क्या आज के समय में तर्क संगत है। प्रेमचन्द जी ने शोषित वर्ग का नाम अपनी कहानी में बार- बार उसकी जाति से पुकारा है जोकि एक बार उसकी जाति से पुकार कर वस्तु स्थिति से अवगत कराया जा सकता था। उनकी कहानी ग्रामीण क्षेत्र एवं शोषित वर्ग की पीड़ा को उजागर करती है।
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    Somnath Narang
    10 मई 2020
    महान रचना....आज अगर मुन्शी जी जीवित होते ऐसी रचना लिखने पर लिब्रान्डू, वामपंथी कबाल, भीम आर्मी व सेक्युलर ब्रिगेड ने उनका जीना मुश्किल कर दिया होता...और उनकी जान के पीछे पड़ गए होते।