एक पहाड़ी नदी के बीच बड़े से पत्थर पर बैठा हूँ। सरिता, मेरे सामने एक छोटे पत्थर पर बैठी मुस्करा रही है। उसके गोरे सुडौल पैर पत्थरों के बीच से कलकल करती बहती पतली जलधारा से अठखेलियाँ कर रहे हैं। ढलती शाम की सुनहरी धूप उसके चेहरे के सौंदर्य को बढ़ा रही है। देखते ही देखते, पतली-पतली जलधाराएँ विलुप्त हो जाती हैं और उफनता, हरहराता जल पूरी नदी को अपने आगोश में भर लेता है। हम किनारा पकड़ने योग्य भी नहीं रहते। दोनों के चेहरों पर भयानक घबराहट है। तेज़ जलधारा में हमारा बह जाना निश्चित है। मैं हड़बड़ाकर उठता ...
रिपोर्ट की समस्या
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