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डूबते को किनारा…

3.9
1798

एक पहाड़ी नदी के बीच बड़े से पत्थर पर बैठा हूँ। सरिता, मेरे सामने एक छोटे पत्थर पर बैठी मुस्करा रही है। उसके गोरे सुडौल पैर पत्थरों के बीच से कलकल करती बहती पतली जलधारा से अठखेलियाँ कर रहे हैं। ढलती शाम की सुनहरी धूप उसके चेहरे के सौंदर्य को बढ़ा रही है। देखते ही देखते, पतली-पतली जलधाराएँ विलुप्त हो जाती हैं और उफनता, हरहराता जल पूरी नदी को अपने आगोश में भर लेता है। हम किनारा पकड़ने योग्य भी नहीं रहते। दोनों के चेहरों पर भयानक घबराहट है। तेज़ जलधारा में हमारा बह जाना निश्चित है। मैं हड़बड़ाकर उठता ...

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लेखक के बारे में
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सुभाष नीरव

जन्म : 27-12-1953, मुरादनगर(उत्तर प्रदेश)प्रकाशित कृतियाँ : तीन कहानी संग्रह हिंदी में (दैत्य तथा अन्य कहानियाँ, औरत होने का गुनाह, आख़िरी पड़ाव का दु:ख), एक कहानी संग्रह पंजाबी में – ‘सुभाष नीरव दीआं चौणवियां कहाणियाँ’। दो कविता संग्रह(यत्किंचित, रोशनी की लकीर), दो लघुकथा संग्रह (कथा बिन्दु, सफ़र में आदमी), दो बाल कहानी संग्रह(मेहनत की रोटी और सुनो कहानी राजा)। पंजाबी से 40 पुस्तकों का हिंदी में अनुवाद।ब्लॉग्स : साहित्य और अनुवाद से संबंधित अंतर्जाल पर ब्लॉग्स- ‘सेतु साहित्य’, ‘कथा पंजाब’, ‘सृजन यात्रा’, ‘गवाक्ष’ और ‘वाटिका’।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Nishant Kumar
    28 मार्च 2017
    very nice and full of suspence.... amazing
  • author
    22 फ़रवरी 2017
    बहुत ही बढ़िया कथा आदरणीय नीरव जी
  • author
    12 मार्च 2017
    बहुत बढ़िया सर ।
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    Nishant Kumar
    28 मार्च 2017
    very nice and full of suspence.... amazing
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    22 फ़रवरी 2017
    बहुत ही बढ़िया कथा आदरणीय नीरव जी
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    12 मार्च 2017
    बहुत बढ़िया सर ।