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दिल्ली गर्ल

4.2
102041

मौसम अपने पूरे शबाब पर था , साँझ धीरे से झीने काले दुपट्टे मे अपने अंगों को ढ़क रही थी । लाखो मद मस्त दिल अपनी आँखों के दांतों तले साँझ का शबाब चबा रहे थे , पर वो इन सब से बेखबर अपने टाइपराइटर की ...

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  • author
    Kanika
    25 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2018
    aisa laga jese apni hi kahani padh rahi hu. anurag jesa pati jo jhuth aur makkari par hi chalta tha. aur aisa sasural jaha mujhe sirf nichi nigaaho se dekha jata. meri bhavnao ko aapne behtarin shabd aur soch di h. dhanywaad.
  • author
    05 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2018
    सच है, बहुत ही कड़वा है पर सच है । प्रेम के नाम पर अहं की तुष्टि के लिए ,पुरुष किस हद तक जा सकता है। दुनिया के सामने आदर्श पुरुष का मुखौटा लगाए अनुराग जैसे लोग ,पुरुष नहीं नपुंसक होते हैं । अपने अंदर की हीनता छिपाने के लिए ...मर्यादा और संस्कार के नाम पर ना जाने कितने झूठे सच्चे इल्जाम स्त्री के ऊपर डाल देते हैं
  • author
    सुधाकर अदीब
    21 ಮೇ 2017
    कहानी पूर्वार्द्ध में जितनी स्वाभाविक है अंत मे उतनी ही अप्रत्याशित। इसका अंत और बेहतर हो सकता था।
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    Kanika
    25 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2018
    aisa laga jese apni hi kahani padh rahi hu. anurag jesa pati jo jhuth aur makkari par hi chalta tha. aur aisa sasural jaha mujhe sirf nichi nigaaho se dekha jata. meri bhavnao ko aapne behtarin shabd aur soch di h. dhanywaad.
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    05 ಅಕ್ಟೋಬರ್ 2018
    सच है, बहुत ही कड़वा है पर सच है । प्रेम के नाम पर अहं की तुष्टि के लिए ,पुरुष किस हद तक जा सकता है। दुनिया के सामने आदर्श पुरुष का मुखौटा लगाए अनुराग जैसे लोग ,पुरुष नहीं नपुंसक होते हैं । अपने अंदर की हीनता छिपाने के लिए ...मर्यादा और संस्कार के नाम पर ना जाने कितने झूठे सच्चे इल्जाम स्त्री के ऊपर डाल देते हैं
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    सुधाकर अदीब
    21 ಮೇ 2017
    कहानी पूर्वार्द्ध में जितनी स्वाभाविक है अंत मे उतनी ही अप्रत्याशित। इसका अंत और बेहतर हो सकता था।