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धरती मां की वेदना : पृथ्वी दिवस पर कविता

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धरती मां तेरे दोषी हैं हम हैं अक्षम्य हमारे अपराध आधुनिकता की चाह में किया हमने सब बर्बाद तूने तो हे धरती मां बन कर हम बच्चों का खूब ध्यान धरा पर हम निष्ठुर स्वार्थी निकले ऐसे तेरे उपकारों का ना मान ...

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लेखक के बारे में

नामवर से लेकर नए रचनाकारों की रचनाएँ पढ़ने में अभिरुचि है मेरी --- मन के भावों को कभी कभार कागज पर उकेर लिया करता हूँ - कभी कभार भानुमति की भाँती तुकबंदियों का कुनबा भी जोड़ लिया करता हूँ -- सो लिखने में इतना अच्छा भी नहीं हूँ - तो भी मुझे बहुत से अच्छे रचनाकारों के बीच प्रतिलिपि ने जुड़ने का जो सुअवसर प्रदान किया है - मैं प्रतिलिपि का ह्रदय से आभारी हूँ --- सभी माननीय एवम् प्रिय लेखकों से सादर अनुनय है मेरा अपना आशीर्वाद तथा स्नेह मुझ पर कृपया पूर्वक बनाए रखियेगा - ( विशेष रूप से कहना चाहूँगा कि मैं यहाँ पढ़ने की रुचि के कारण जुड़ा हुआ हूँ )

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