कातिक बोकर मेड़ किनारे, बैठा कृषक भाग्य पर रोए। धान बेचकर गेहूं बोए। जितनी लागत लगी धान में उतनी भी वापस न आयी। खेत-जुताई,बीज-बुवाई, खाद-पांस पर है महंगाई। चिंताओं का बोझ लदा सिर भला चैन से कैसे ...
कातिक बोकर मेड़ किनारे, बैठा कृषक भाग्य पर रोए। धान बेचकर गेहूं बोए। जितनी लागत लगी धान में उतनी भी वापस न आयी। खेत-जुताई,बीज-बुवाई, खाद-पांस पर है महंगाई। चिंताओं का बोझ लदा सिर भला चैन से कैसे ...