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देही क्रमशः 'धर्म ही कर्म है'

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परिचय : देह, देही का बोध कराने व धर्म का उचित अर्थ समझाने के बाद अब भगवान दुविधा से व्याकुल अर्जुन को समझाएंगे कि, अगर देखा जाए तो तुमने स्वयं युद्ध की अभिलाषा कभी नहीं रखी। तुमने तो बार बार ...