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दरवाजा

4.7
356

कलेक्ट्रेट में आज बड़ी भीड़ हो रही थी । लोग तरह तरह की बातें कर रहे थे। चारों तरफ अफरातफरी मची हुई थी। सारे चपरासी इधर से उधर दौड़ रहे थे। किसी को भी मरने तक की फुर्सत नहीं थी। किसी ने रात में ...

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लेखक के बारे में
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श्री हरि

हरि का अंश, शंकर का सेवक हरिशंकर कहलाता हूँ अग्रसेन का वंशज हूँ और "गोयल" गोत्र लगाता हूँ कहने को अधिकारी हूँ पर कवियों सा मन रखता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैं दिल से करता हूँ ।। गंगाजल सा निर्मल मन , मैं मुक्त पवन सा बहता हूँ सीधी सच्ची बात मैं कहता , लाग लपेट ना करता हूँ सत्य सनातन परंपरा में आनंद का अनुभव करता हूँ हिन्दी, हिन्दू, हिन्दुस्तान से बेहद, प्यार मैंदिल से करता हूँ

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  • author
    सरवर हसन "सरवर"
    04 जून 2020
    व्यवस्था पर व्यंग्य करती बेहद शानदार अभिव्यक्ति , शुभकामनाएं 👏👏👏
  • author
    04 जून 2020
    व्यंग्य रचना लिखी है आपने , काफी अच्छा लिखा है भाई श्री
  • author
    भरत पुरोहित ✍️
    04 जून 2020
    हमारे प्रशासन की वास्तविक शासन व्यवस्था यही है !
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    सरवर हसन "सरवर"
    04 जून 2020
    व्यवस्था पर व्यंग्य करती बेहद शानदार अभिव्यक्ति , शुभकामनाएं 👏👏👏
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    04 जून 2020
    व्यंग्य रचना लिखी है आपने , काफी अच्छा लिखा है भाई श्री
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    भरत पुरोहित ✍️
    04 जून 2020
    हमारे प्रशासन की वास्तविक शासन व्यवस्था यही है !