मानव मन भी भावनाओं का सागर है, जिसमें भाव ठाठें मारते रहते हैं। उनमें उद्देलन होता रहता है तथा तरंगें पैदा होती रहती हैं। औरों की तरह मेरे मन में भी भाव तरंगित होते रहते हैं।इन्हीं तरंगित भाव को समेटकर टूटे फूटे शब्दों से विन्यास कर कविता के रूप में परिवर्तित करने का प्रयास करता हूँ। मेरा यह कार्य स्वयं को कवि के रूप में स्थापित करना नहीं है वरन उम्र के इस पड़ाव में समय का सदुपयोग और अपने भावों को साझा करना है इन्हीं भावों को रचनाओं के रूप में बड़ी धृष्टता और क्षमा याचना के साथ प्रस्तुत कर रहा हूँ।
रिपोर्ट की समस्या
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