pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

डाकिया

0

डाकिया बहुत याद आता है वो बूढा डाकिया ऐनक से झांकती उसकी उम्रदराज आंखें पढ लेती थीं मजमून खतों बिना लिफाफा खोले। एक अदद मैली थैली में बेतरतीब भरे होते थे खत, खुशी और गम का संदेसा लिये। राह तकते थे ...

अभी पढ़ें
लेखक के बारे में
author
prakash keode

कवि, लेखक, सामाजिक कार्यकर्ता।

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है
  • author
    आपकी रेटिंग

  • रचना पर कोई टिप्पणी नहीं है