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काले बुर्के में लिपटी दोनों लड़कियां फिर मेरे ऑफिस में आयीं। मुश्किल से २० -२२ साल की उम्र ,दुबला पतला शरीर ,गोरा सुन्दर चेहरा, आँखें नीची, कुछ डरी डरी सी। बड़ी तहजीब से आदाब कर सिमटकर बैठ गयीं। " ...

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लेखक के बारे में
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सुबोध सिंह

साहित्य और सामजिक उन्नयन में रूचि रखने वाले डॉक्टर सुबोध कुमार सिंह एक प्लास्टिक सर्जन हैं और अपनी समाजसेवा के लिए विख्यात हैं। उनके कार्यों पर अनेकों डाक्यूमेंट्री बनी हैं जिनमें ऑस्कर विजेता स्माइल पिंकी ,और AIB अवार्ड विजेता बर्न गर्ल रागिनी प्रमुख हैं

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    Kanhaiya Lath Jyant
    14 मई 2018
    आज के समय मे ऐसे डॉक्टर होना असंभव है जो मरीज की मजबूरी से पिघल जाए
  • author
    Soni Singh
    09 अक्टूबर 2018
    nice one...but aajkl aise doc hote nahi h chahe aap kitne bhi jaruratmand ho wo ek paisa nahi baksh skte h .... totally business
  • author
    Shahnawaz Khan
    14 मई 2018
    एक ही पर्दे पर सैकड़ो बातें लिख दी!
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    Kanhaiya Lath Jyant
    14 मई 2018
    आज के समय मे ऐसे डॉक्टर होना असंभव है जो मरीज की मजबूरी से पिघल जाए
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    Soni Singh
    09 अक्टूबर 2018
    nice one...but aajkl aise doc hote nahi h chahe aap kitne bhi jaruratmand ho wo ek paisa nahi baksh skte h .... totally business
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    Shahnawaz Khan
    14 मई 2018
    एक ही पर्दे पर सैकड़ो बातें लिख दी!