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क्रिकेट का नक्शा

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न जाने क्यों हमारी फितरत है, विदेशी चीजें हम पसंद करते हैं यही तो हमारी गुलामी की दासतां है। क्रिकेट भी कोई हमारे देश का खेल नहीं, फिर भी इसका नशा सब पर चढ़ा है, गली गली में इसका शोर मचा है। बच्चे ...

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लेखक के बारे में
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Bina Jain

सेवा निवृत प्रधानाचार्य हूं‌। साहित्यिक अभिरुचि के कारण सन् २००‌० से विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। 'अहिंसा आज भी प्रासंगिक है' २५६ प्रष्ठ की एक पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है।

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