1913 में दादा साहेब फ़ालके ने ‘राजा हरिशचन्द्र’ बनाई थी, तो ग्राण्ट रोड़ के कैपिटल थियेटर में लट्ठे का परदा लगाकर ‘चलती-फ़िरती तस्वीरों का तमाशा’ देखने चन्द दर्शक जुटे। अब वहां ‘कैपिटल’ का नामो-निशान ...
1913 में दादा साहेब फ़ालके ने ‘राजा हरिशचन्द्र’ बनाई थी, तो ग्राण्ट रोड़ के कैपिटल थियेटर में लट्ठे का परदा लगाकर ‘चलती-फ़िरती तस्वीरों का तमाशा’ देखने चन्द दर्शक जुटे। अब वहां ‘कैपिटल’ का नामो-निशान ...