भावों का उद्गगार भी है विचारों का उद्भास भी है हँसती हुई सी खनक भी है टूटे जाने की कसक भी है दर्द का कुछ रुदन भी है रुंधी रुधी कुछ घुटन भी है रूप का सौन्दर्य भी है प्रेम का माधुर्य ...
भावों का उद्गगार भी है विचारों का उद्भास भी है हँसती हुई सी खनक भी है टूटे जाने की कसक भी है दर्द का कुछ रुदन भी है रुंधी रुधी कुछ घुटन भी है रूप का सौन्दर्य भी है प्रेम का माधुर्य ...