चौखट सदियों से रही थी कैद, चौखट में. चौखट-दर-चौखट घूमती रही थी मैं. चौखट को ही, अपना धर्म, कर्म, ईमान, समझती रही थी मैं. ‘बंधुआ-औरत’ बनी, जन्म से ही घुट्टी में, ‘परिवार-सेवा-धर्म’ को, घूँट-घूँट पीती ...
चौखट सदियों से रही थी कैद, चौखट में. चौखट-दर-चौखट घूमती रही थी मैं. चौखट को ही, अपना धर्म, कर्म, ईमान, समझती रही थी मैं. ‘बंधुआ-औरत’ बनी, जन्म से ही घुट्टी में, ‘परिवार-सेवा-धर्म’ को, घूँट-घूँट पीती ...