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चंचल

4.0
98618

भाई बहन के प्यार को तरसती एक मासूम

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लेखक के बारे में
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Dinesh Kumar

ये मेरे दिल के अहसास, केवल मेरे दिल के पास । व्यक्त करूं मै कैसे इनको, शब्द नहीं जुबां के पास ।। नाम:- दिनेश कुमार जन्म स्थान:- जिला बस्ती (उत्तर प्रदेश) वर्तमान गृह नगर - दिल्ली लेख:- कविताएँ, कहानियां, अध्यात्म लेख प्रथम पुस्तक:- साहित्य सुमन अनेकों दैनिक समाचार पत्रों में अनेकों लेख एवं कविताएँ प्रकाशित ।

समीक्षा
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  • कुल टिप्पणी
  • author
    09 नवम्बर 2018
    कहानी की शुरुआत बहुत अच्छी थी। लगा था कि आज के समय में जो एकल बच्चे का चलन बढ़ा है उस पर कुछ मुद्दा उठाएंगे आप परंतु अचानक से कहानी की दिशा ही बदल गयी जिसका आपस में कोई तालमेल ही नही है। चंचल के साथ जो हादसा हुआ उसमे वो एकलौती हो या दस भाई बहन वाली कोई फर्क नही पड़ता
  • author
    Namrata Chandak
    26 अगस्त 2018
    कहानी की सुन्दरता चंचल के साथ खत्म हो गई . एक आशा सुमन के साथ . काश कि अंत दो बहनों सरीखी सखी के मिलने से होता . तुषार की दो बेटी हो जाती और चंचल का अधूरा पन समाप्त हो जाता .
  • author
    Sarita
    10 अगस्त 2021
    वैसे तो हादसा कहीं भी किसी के साथ हो सकता है । पर यहाँ लापरवाही माँ की थी। एक तो इकलौती संतान और नयी जगह, माँ को बेफिक्र नहीं होना चाहिए था।
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    09 नवम्बर 2018
    कहानी की शुरुआत बहुत अच्छी थी। लगा था कि आज के समय में जो एकल बच्चे का चलन बढ़ा है उस पर कुछ मुद्दा उठाएंगे आप परंतु अचानक से कहानी की दिशा ही बदल गयी जिसका आपस में कोई तालमेल ही नही है। चंचल के साथ जो हादसा हुआ उसमे वो एकलौती हो या दस भाई बहन वाली कोई फर्क नही पड़ता
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    Namrata Chandak
    26 अगस्त 2018
    कहानी की सुन्दरता चंचल के साथ खत्म हो गई . एक आशा सुमन के साथ . काश कि अंत दो बहनों सरीखी सखी के मिलने से होता . तुषार की दो बेटी हो जाती और चंचल का अधूरा पन समाप्त हो जाता .
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    Sarita
    10 अगस्त 2021
    वैसे तो हादसा कहीं भी किसी के साथ हो सकता है । पर यहाँ लापरवाही माँ की थी। एक तो इकलौती संतान और नयी जगह, माँ को बेफिक्र नहीं होना चाहिए था।