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चालाक बंदर

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कूद कूद कर शाखाओं पर तू सब पेेड़ को नष्ट कर  जाता हैै हांकते भगाते हर दिन तुुझको इंसान तो रोज ही थक जाता है । आया था एक बार छत पर जब तू देख तुझे मेरा शेरू बोलता भू भू झपट कर तू तब उसे डराया करता  फिर ...

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लेखक के बारे में

मैं एक प्रकृति प्रेमी हूं मुझे कविताएं शायरियाँ लिखने का बहुत शौक है ,मैं काफी समय से एक अच्छा प्लेटफार्म ढूंढ रही थी ,जहां मैं अपनी रची हुई कविताओं का उल्लेख कर सकूं,मैं प्रकृति और प्रेम के बारे मैं लिखती हूं.मैंने कविता लिखना जब मैं १६ साल की थी तब से किया ,और लिखते लिखते मुझे प्रकृति में ही खो जाने का दिल करता है,मैं एक शांत जगह पाना चाहती हूं जहां मैं अपनी बोल अपनी भावनाओं को लिख सकूं.चाहती तो मैं एक गायक बनना चाहती हूं.जिस दिन प्यार और सहयोग मिलेगा उस दिन मैं कोशिश करूंगी .आशा करती हू.मेरी रचना सब लोग पढ़ेंगे और पसंद भी करेंगे .आपका सहयोग ही मेरा उत्साह बढ़ाएगा प्रकृति से जुड़ने और आप सबको जुड़ाने का. धन्यवाद अनुराधा नेगी प्रकृति से जुड़ी.

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