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चाहत

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चाहत कुमार दुर्गेश "विक्षिप्त" तुम छोड़ दो ये दुनिया की रीति, क्यों हमसें दुर हो रहती, तुम हमसें इतनी चाहत करोगीं, शिव संग जैसे पार्वती रहती। कृष्ण राधा   के प्रेम में थी मिठास, हमकों भी तुम ...