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चाहत

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चाहत कुमार दुर्गेश "विक्षिप्त" तुम छोड़ दो ये दुनिया की रीति, क्यों हमसें दुर हो रहती, तुम हमसें इतनी चाहत करोगीं, शिव संग जैसे पार्वती रहती। कृष्ण राधा   के प्रेम में थी मिठास, हमकों भी तुम ...

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लेखक के बारे में
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Kumar durgesh Vikshipt *Vaishnav*

साहित्य प्रेमी ( पूर्व नवोदयन विद्यार्थी )9983113919 कोटडी़ ग्राम, जिला भीलवाडा़,राजस्थान

समीक्षा
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  • author
    शशि कुशवाहा
    17 ഡിസംബര്‍ 2018
    bahut kubh
  • author
    17 ഡിസംബര്‍ 2018
    सार्थक रचना । (दूर। बिना) शब्दों को संशोधित कर लीजिएगा । 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 हार्दिक बधाई ।
  • author
    Bhoopendra Chauhan "Raaj"
    21 ജനുവരി 2019
    मात्रा सुधार करें,बहुत बढ़िया कविता, अति उत्तम
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    शशि कुशवाहा
    17 ഡിസംബര്‍ 2018
    bahut kubh
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    17 ഡിസംബര്‍ 2018
    सार्थक रचना । (दूर। बिना) शब्दों को संशोधित कर लीजिएगा । 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 हार्दिक बधाई ।
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    Bhoopendra Chauhan "Raaj"
    21 ജനുവരി 2019
    मात्रा सुधार करें,बहुत बढ़िया कविता, अति उत्तम