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बिगाड़ का डर और ईमान की बात

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4.5

अब मुिक्तबोध की तरह किसी की आत्मा चीखती नहीं, कोई आत्मधिक्कार ऊपजती नहीं कि जीवन क्या जिया ? लिया बहुत-बहुत ज्यादा, दिया बहुत-बहुत कम और इस चक्कर में पड़कर मर गया देश और बच गये तुम-हम। जबकि ...