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भक्ति की ज्योति: चैतन्य महाप्रभु को वंदन

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पंद्रहवीं सदी का था वह काल, उथल-पुथल से भरा हर हाल। धर्म, समाज और राजनीति में, छाया था भारी अंधकार। परकीयों के आघात लगे, संस्कृति के स्वर शांत हुए। नीचले वर्ण के जन को फिर, धार्मिक अधिकार नहीं मिले। ...

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ऋषियों ने थामा है हात हमारा, कृण्वन्तो विश्व आर्यम है ध्यास हमारा, सनातन के रंग में रंग जाएंगे, जब वेदों ने दिखाए पथ पर चलते जाएंगे

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