pratilipi-logo प्रतिलिपि
हिन्दी

भाग-4 (कर्म करो फल की चिन्ता मत करो)

4.8
588

कमरे आकर फिर सोचने लगी आखिर करे तो करे क्या? और किसके लिए क्षितिज ने तो बिना मेरी बात सुने ही मुझसे मुह मोड़ लिया था। सोचते-सोचते कब गहरी नींद मे चली गई पता ही नही चला। तभी भगवद्गीता का एक श्लोक ...

अभी पढ़ें
क्या सोचा था क्या पाया है?
क्या सोचा था क्या पाया है?
ज्योति सिंह "पंक्ति"
4.6
ऐप डाउनलोड करें
लेखक के बारे में
author
ज्योति सिंह

"शब्दों की दर्जी हूं पंक्तियां जोड़ती रहती हूं , कल्पनाओं की सुई से कविताएं सिलती रहती हूं"

समीक्षा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    kheluram dhruw "शम्भूशेख"
    30 जुलाई 2021
    अच्छा लगा
  • author
    आपकी रेटिंग

  • कुल टिप्पणी
  • author
    kheluram dhruw "शम्भूशेख"
    30 जुलाई 2021
    अच्छा लगा