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बेवजह

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बना साज तन को, बंशी में फूँक रहा वो पिरो उमींद के सुर, सरगम में दे रहा वो लयबद्ध कर जीवन को, जीवन दे रहा वो अज्ञात छंद को, अनहद नाद बना रहा वो परस्पर छिद्र कर बंद, नए द्वार खोल रहा वो पार्थ सम्मुख ...

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Nitin Srivastava
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