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बेरोजगारे इश्क

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अर्पण सर पकड़ कर धम्म से बैठ गया था कुर्सी पर और उसके आँखों से अविरल गंगा यमुना बह चला था। उसके जेहन में एकाएक गुजरे वर्षो की सारी धुंधली तश्वीर स्पष्ट हो चली थी कैसे वह और आकृति एक कोचिंग संस्थान ...

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Sujit Kumar Sangam
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